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भामह, पत्ततपर्शता, प्रतिवस्तूपमा और दृष्टान्त पर भामह, अन्तिरन्यास,तुल्ययोगिता, हेतु और समाहित पर दण्डी, समुच्चय और अवसर पर रूट, जाति और व्यतिरेक पर रूप्यक, रूपक, उत्प्रेक्षा, पर्यायो क्ति, अतिशोक्ति, आक्षेप, विरोध, विषम, परिसंख्या, संकर व एकावली पर मम्मट का प्रभाव परिलक्षित होता है। वाग्भट प्रथम, जहाँ अनेक अलंकारों का सम्मेलन हो, उसे संकरालंकार मानते हैं।।
आचार्य हेमचन्द्र ने मात्र 29 अर्थालंकारों का प्रतिपादन किया हैं -(1) उपमा, (2) उत्प्रेक्षा, (3) रूपक, ( 4 ) निदर्शन, (5) दीपक, (6) अन्योक्ति, (7) पर्यायोक्त, (8) अतिशयोक्ति, (७) आक्षेप, (10) विरोध, (11) सहोक्ति, (12) समासोक्ति, (13) जाति, (14) व्याजस्तुति, (15) श्लेष, (16) व्यतिरेक, (17) अर्थान्तरन्यास, (18) सन्देह, (19) अपह्नुति, (20) परिवृत्ति, (21) अनुमान, (22)
स्मृति, (23) भान्ति , (24) विषम, (25) सम, (26) समुच्चय, (27) परिसंख्या, (28) कारपमाला और (29) संकर।
इनका विवरप इस प्रकार है -
। उपमा - "यं साधर्म्यमुपमा उपमा के इस लक्षण में आचार्य हेमचन्द्र ने "यं ' कहकर अलंकार के सौन्दर्य पर्व पर विशेष बल दिया है।
1. वाग्भटालंकार, 4/144. 2 काव्यानुशासन, टीका, पृ. 339