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________________ 308 कम में माधुर्यादि तीन गुपों का भी परैः पद से उल्लेख किया है। जो अन्य मत का घोतक है। अत: उनके अनुसार दस गुप ही मानना चाहिए। इस पतंग में भावदेवतरि ने शोभा, अभिमान, हेतु, प्रतिषेध, निरूक्त, युक्ति, कार्य और प्रसिद्धि - इन आठ काव्य चिन्हों (काव्य - लधपों) का भी उल्लेख किया है। जो इस प्रकार है - 1 828 38 शोभा - दोष का निषेध। यथा जहाँ तुम हो वहाँ कलियुग भी शुभ है। अभिमान - वस्तुविषयक उहापोह। यथा - यदि वह चन्द्रमा है तो उष्पता कैसे? हेतू - अन्यदेको क्ति का त्याग हेतु है। यथा - 'न इन्दुर्नार्कोगुरूझौं। प्रतिषेध - निषेध । यथा - तुमने युद्ध से नहीं, माँह से ही शत्रुओं को जीत लिया। निरूक्त - निर्वचन। यथा - उन दोनों को मैं इस प्रकार समझता है, किन्तु आप दोभाकर है। ६४ 5 I. वही, 4/8 - काव्यालंकारतार - 4/9.
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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