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युक्ति - विशिष्टता । यथा -
तुम नवीन जलद हो, जो सोने की वर्षा करते हो। कार्य - फलकथन। यथा -
रात्रिरूपी स्त्री से विशिष्ट यह चन्द्रमा (आप दोनों के) अच्छेद (संयोग) के लिये उदित हो रहा है। प्रसिद्धि - प्रसिद वस्तुओं में तुल्यता का कथन - यथा -
समुद्र जल से महान है और आप बल से महान हैं।
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___ इस प्रकार इस सम्पूर्प विवेचन से स्पष्ट होता है कि इन सभी जैनाचार्यों ने अलंकारशास्त्र की परम्परा का अधुण्परूप से निर्वाह करते हुए अपनी शैली मे गुप-स्वरूप आदि विषयों पर विवेचन प्रस्तुत किया है। आ. हेमचन्द्र ने जो अतिरिक्त पांच काव्यागुणों का उल्लेखपूर्वक खण्डन किया है, वह अन्य किसी आचार्य द्वारा निर्दिष्ट न किये जाने के कारप उल्लेखनीय है। आ. वाग्भट प्रथम, भावदेवतरि - ये जैनाचार्य भरत तथा वामन आदि के अनुयायी है, क्योंकि इन्होने दप्त गुपों का समर्थन किया है। आ. हेमचन्द्र, नरेन्द्रप्रसार व वाग्भट द्वितीय ये तीन जैनाचार्य आनन्दवर्धन व मम्म्टादि के समर्थक हैं क्योंकि इन्होंने माधुर्यादि तीन गुपों को ही स्वीकार किया है तथा शेष का इन्ही में अन्तर्भाव किया है। इस प्रकार निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि इन सभी जैनाचार्यों ने पूर्वाचार्यो द्वारा मान्य किसी एक विचारधारा को स्वीकार कर, शेष का युक्तिपूर्वक खंडन किया है।