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तीन गुपों का लक्षणसहित उदाहरपपूर्वक विवेचन किया है। तथा आ. हेमचन्द्र के समान प्रत्येक गुप के उदाहरप के साथ उसका प्रत्युदाहरप भी प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही रसों में गुपों की तरतमता व गपों के व्यजक वर्ष - विशेषों का भी निर्देश किया है।'
___आ. वाग्भट - द्वितीय ने सर्वप्रथम भरतमुनि सम्मत दत काव्यगुपों के नामोल्लेखपूर्वक लक्षप प्रस्तुत किए है, किन्तु इन्होंने स्वयं केवल मार्यादि तीन गुपों को ही स्वीकार किया है तथा शेष का अन्तर्भाव इन्हीं तीन गुपों में माना है। आ. भावदेवसरि ने गुपवर्पन प्रसंग में पहले मरतादि - सम्मत श्लेष, प्रसाद आदि दस गुपों का नामोल्लेख किया है तथा प्रत्येक का लक्षप व संधप में उदाहरप भी प्रस्तुत किया है। इसी
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1. वही, 6/15-28 2. दण्डिवामनवाग्भटादिपपीता दशकाव्यगपाः। वयं तु माधुर्योज : प्रसादलक्षपास्त्रीनेव गुपान्मन्यामहै। शेषास्तेष्वेवान्तर्भवन्ति।
काव्यानु, वाग्भट, टीका, पृ. 39 3 काव्यालंकारसार -
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