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पल्लवित होना लतावृक्षादि का गुण है, न कि यश का किन्तु कवि ने पल्लवित होने की विशेषता को राजा के यश में नियोजित करके समाधि गुप उत्पन्न कर दिया है।
श्लेष और ओजस् - अनेक पदों का परस्पर गुम्फित होना श्लेष है और समात का बाहुल्य ओज । समास बहुला पदावली गद्य में ही शोभित होती है, पद्म मे नहीं।
यथा -
मुदायस्योद्वगीतं सह सहचरी भिर्वनचरै
: श्रुत्वा हेलोतधरपिभारं भुजबल ।
दरोद्भगच्छद्दर्भाङ्कु- रनिकरदम्भात्पुलकिताचमत्का रौद्रेकं कुल शिखरिस्तेऽपि दधिरे । । 2
यहाँ समस्त पद एक सूत्र मे गंधी गई मषियों के सदृश परस्पर गुम्फित है, अतः श्लेष गुण है।
ओज, यथा
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समरा जिस्फुरदरिनरेशकरिनिकरशिरः सरससिन्दूरपूरपरिचयेनेवारूपितकरतलो देव ।।
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1. श्लेषो यत्र पदानि स्युः स्यूतानीव परस्परम् । ओजः समासभस्त्वं तद्ग्येष्वतिसुन्दरम् ।।
वही, 3/12
2 वही, 3/13
3. वही, 3/14