SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 293 यह गांश समासबहुल होने ते "ओज' गुप का उदाहरप हैं। मार्य और तौकुमार्य - सरत अर्थ के बोधक पदों का प्रयोग माधुर्य गुप है और कोमल-कान्त - पदावली कामयोग सौकुमार्य गुपं है।' माधुर्य, यथा - फपिमणिकिरपालीत्यतकचन्निचोल :। कुचकलशनिधानत्येव रक्षाधिकारी उरति विशदहारस्फारतामुज्जिहानः । किमिति करसरोजे कुण्डली कुण्डलिन्याः।।2 यहाँ श्रृंगाररत के अनुकूल सरत अर्थ के बोधक पद होने से माधुर्य गुष है। सौकुमार्य, यथा - प्रतापदीपाचनरा जिरेव देव! त्वदीयः करवाल एषः। नो चोदनेन द्विषतां मुनानि श्यामायमानानि कर्य कृतानि।।' यहां कोमलकान्त पदावली होने से सौकुमार्य गुण है। 1. सरतार्थपदत्वं यत्तन्माधुर्यमुदादास। अनिष्ठुरारित्वं यत्तीकुमार्यमिई यया।। पही, 3/15 . वाग्भटालंकार /16 , वाग्म्टाकार, 3/17
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy