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________________ 288 उन्होंने 24 गुणों को वाय, आभ्यन्तर और वैशेषिक में विभाजित कर यो की संख्या 72 स्वीकार की है, जो अन्याचार्यों की अपेक्षा सर्वाधिक है। हेमचन्द्राचार्य द्वारा उल्लिखित अज्ञातनामा आचार्य के अनुसार गुणों की संख्या 5 है- ओज, प्रसाद, मधुरिमा, साम्य और औदार्य।' इसी प्रकार जयदेव द्वारा उल्लिखित अज्ञातनामा आचार्य के अनुसार गुपों की संख्या 6 है - न्यास, निर्वाह प्रौदि, औचिति, शास्त्रान्तररहत्योक्ति व संग्रह। जैनाचार्यों में सर्वप्रथम वाग्भट प्रथम ने दस गुपों का विवेचन किया है, जो भरतमुनि सम्मत है। प्रत्येक का सोदाहरप स्वरूप निम्न प्रकार है औदार्य - अर्थ की चारूता के प्रत्यायक पद के साथ वैसे ही अन्य पदों की सम्मिलित योजना को उदारता" नामक गुप कहते हैं।' 1. काव्यानुशासन, 4/ विवेकवृत्ति। चन्द्रालोक, 4/12 3 वाग्भटालंकार, 3/2 + पदानामर्थचारूत्वपत्यायकपदान्तरः। मिलितानां यदाधानं तदौदार्य स्मृतं यथा।। वही, 3/3
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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