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वाग्भट - प्रथम, वाग्भट - द्वितीय व भावदेवतरि - इन जैनाचार्यों ने गुप विवेचन तो किया है पर गुण-स्वरूप पर प्रकाश नहीं
डाला है।
गुष्य-भेद
सर्वप्रथम आ. भरत ने दस गुपों का उल्लेख किया है-(1) श्लेष (2) प्रसाद, (3) समता, (4) समाधि, (5) माधुर्य, (6) ओज, (7) पदसौकुमार्य, (8) अर्धा भिव्यक्ति, (१) उदारता और (10) कान्ति।' इन्हीं का अनुसरण करते हुए आ. दण्डी 2 व वामन' ने भी दस गपों का उल्लेख किया है, जिनके नाम भरत निर्दिट ही हैं। इनके अतिरिक्त वामन ने दस अर्थगुपों का भी उल्लेख किया है, जिससे उनके मतानुसार गुपों की संख्या 20 है। इन दस अर्थगुपों के नाम तो वही है, जो शब्दगुणों के हैं, किन्तु इनके स्वरूप में अन्तर है। इस प्रकार दण्डी को पूरूपेप एवं वामन को आंशिक रूप में भरत का अनुयायी कहा जा सकता है।'
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• लेषः प्रसादः समता समाधिः माधुर्यमौजः पदसौकुमार्यम्। अर्थस्य च व्यक्तिरूदारता च कान्तिश्च काव्यस्य गुमा देशीः।।
- नाट्यशास्त्र, 17/96 2. काव्यादर्भ 1/41 3 काप्यालंकारसूत्र, 3/1/4 4. जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र में योगदान, पृ. 189