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आ. नरेन्द्रप्रभसरि ने मम्मट द्वारा उल्लिखित 23 अर्थदोषों का ही विवेचन किया है।' उनके उदाहरप भी प्रायः काव्यानुशासन व काव्यप्रकाश ते गृहीत हैं।
आ. वाग्भट द्वितीय ने 14 अर्थदोषों का उल्लेख किया है। जिनके नाम इस प्रकार है - (I) कष्ट, (2 ) अपुष्ट, (3) व्याहत, (4 ) ग्राम्य, (5) अश्लील, (6) साकांक्ष, (7) संदिग्ध, (8) अकम, (१) पुनरूक्त, (10) सबरभिन्न, (11) विदुव्यंग्य, ( 12 ) प्रसिद्धिविरुद्ध, (13) विद्याविरुद्ध और (14) निर्हेतु। इसके अतिरिक्त उन्होंने लिया है कि परिवृत्त नियम, परिवृत्त - अनियम, परिवृत्त सामान्य, परिवृत्त विशेष, परिवृत्त विधि और परिवृत्त - अनुवाद आदि दोष काव्यपकाश में कहे जाने पर मी पूर्वोक्त दोषों में उनका अन्तर्भाव हो जाता है अतः हमने उनका उल्लेख नहीं किया है।'
मावदेवसरि ने आठ अर्थदोषों का उल्लेख किया है- (1) अमुष्टार्य, (2) कष्ट, (3) व्याहत, (4) विरुद्ध, (5) अनुचित, (6) गाम्य, (7) संदिग्ध और (8) पुनरूक्त / अनुचितार्य को जिसे पूर्वाचार्यों ने पदगत
1. अलंकारमहोदधि, 5/11-14 2. काव्यानुशासन - वाग्भट, पृ. 27 3 परिवृत्तनियमा नियमसामान्य विशेष विघ्यनुवादादयः काव्यप्रकाशादावुक्तावपि पूर्वोक्तेष्वेवान्तर्भवन्तीत्यस्माभिर्नोक्तः।
- काव्यानुशासन - वाग्भट, स्वोपज्ञ - अलाकार तिलक टीका-पृ. 29 ५. काव्यालङ्कारसार, 3/19