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8208 परिवृत्त
अनुवाद
अनुवाद की अपेक्षा विधि का कथन करना । यथा
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*परिवृत्तोऽनुवादो विधिना" अर्थात्
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प्रयत्नपरिबोधित: स्तुतिभिरद्य शेषे निशां,
अकेशव पाण्डवं भुवनमध निः सोमकम् ।
इयं परिसमाप्यो रपकथाऽद्य दो: शालिनां,
अपैतु रिपुकाननातिगुरूरह भारो भुवः । । ।
1. वही, पृ. 273
260
यहाँ "शपित" इस अनुवाद के वाच्य होने पर "शेष" इस विधि का कथन करने से परिवृत्त - अनुवाद दोष है।
इस प्रकार आ. हेमचन्द्र ने मम्मट के 23 अर्थदोषों के स्थान पर 20 अर्थदोष माने हैं। अधिकांश उदाहरणों में तथा कतिपय उदाहरणों के प्रतिपादन में साम्य दृष्टिगत होता है। मम्मट ने जिन अन्य तीन अर्थ दोषों - 'निर्हेतु, अनवीकृतत्व व अपयुक्तता को माना है, उनमें से निर्हेतु का अन्तर्भाव हेमचन्द्राचार्य ने साकाइक्ष में किया है तथा अनवी कृतत्व का जो उदाहरण मम्मट ने दिया है उसे आ. हेमचन्द्र ने पुनरूक्त दोष के गुण होने के उदाहरणरूप में प्रस्तुत किया है। निष्कर्षत: आ. हेमचन्द्र ने मम्मट के आधार पर ही दोषं - निरूपण प्रस्तुत किया है, किन्तु विवेचन तथा उदाहरणों के क्षेत्र में उनकी विचार - सूक्ष्मता व पाण्डित्य स्पष्ट परिलक्षित होता है।
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