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________________ 259 1183 परिवृत्त - विशेष - "परिवृत्तो विशेषः सामान्येन" अर्थात विशेष की अपेक्षा सामान्यवाचक शब्द का प्रयोग करना। यथा - - - - - प्रयामां श्यामलिमानमानयत मोः सान्दैर्मधीक चकैः, मन्त्रं तन्त्रमय प्रयुज्य हरत श्वेतोत्पलानां मितम्। चन्द्रं चूर्पयत क्षपाच्च कपाः कृत्वा शिलापट्टिके येन दृष्टुमहं क्षमे दश दिशस्तद्वक्त्रमुद्राङ्किता।।' यहाँ "ज्योत्सनाम्" इस विशेष के वाच्य होने पर "श्यामाम्" इस सामान्य का कथन करने से उक्त दोष है। 8198 परिवृत्त विधि - "परिवृत्तो विधिरनु वादेन' अर्थात् विधि की अपेक्षा अनुवाद कथन करना। यथा - अरे रामाहस्ताभरप] मधुपप्रेषिशरप! समरक्रीडाद्रीडाशमन विरहियापदमन! सरोहतोत्तंस] प्रचलदलनीलोत्पलसखे। सखेदोऽहं मोहूं पलथय कयय क्वेन्दुवदना।। यही विधि के वाच्य होने पर "विरझिापदमन" रूप अनुवाद का कथन होने से परिवृत्तविधि दोष है। • वही, पृ. 272 - वही, पृ. 272
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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