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1165 परिख़त्त - अनियम - "परिवृत्तोऽनियमो नियमेन" अर्थात जिसका नियमपूर्वक कथन उचित न हो किन्तु सनियम कथन हो तो उक्त दोष होता है। यथा -
वक्त्राम्भोजं सरस्वत्यधिवसति सदा शोष एवाधरस्ते, बाहुः काकुत्सथवीर्यस्मृतिकरपपटुर्दधिपस्ते समुद्रः । वाहिन्यः पाश्र्वमता: धपमपि भवतो नैव मुञ्चत्य भीक्षणं स्वच्छेऽन्तर्मानसेऽस्मिन्कथमवनिपते! तेऽम्बुपाना भिलाषः ।।'
यह शोप यह अनियम वाच्य होने पर “शोप एव" यह नियम कहा है। अतः परिवृत्त - अनियम दोष है।
1178 परिवृत्त - सामान्य - "परिवृत्तं सामान्य विशेषण" अर्थात सामान्य की अपेक्षा विशेष वाचक शब्द का प्रयोग करना, यथा -
कल्लोलवेल्लितदृषत्परूष्पहारैः . रत्नान्यमनि मकराकर] मावमंस्थाः । कि कौस्तभेन विहितो भवतो न नाम, याश्याप्रसारितकरः पुरुषोत्तमोऽपि।।2
यहाँ "एकेन किं न विहितो भवतः स नाम इस सामान्य के वाच्य होने पर "कौस्तुभेन' इस विशेष का क्यन होने से परिवृत्त सामान्य दोष है।
1. वही, पृ. 271-72 - वही, पृ. 272