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कल्पित अर्थ होने से असमर्थता
किमुच्यतेऽस्य भूपाल मौलिमालामहामणैः ।
सुदुर्लभंवचो बाणैस्तेजो यस्य विभाव्यते ।। ।
वाक्यगत, यथा
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यहाँ "वच: " शब्द ते "गी" शब्द लक्षित होता है, अतः
कल्पितार्थत्व होने से असमर्थ दोष है । मम्म्ट ने यहाँ पदांशगत नेयार्थता दोष माना है। 2
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सपदि पंक्ति विहंगमनाम्भृत्तनय संविलितं बलशालिना । विपुलपर्वतवर्षिशितैः शरैः प्लवगसैन्यमुलुक जिता जितम् ।। 3
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इसका पदगत उदाहरण
यहाँ पंक्ति दस संख्या का बोधक है। विहंगम का अर्थ है चक्र, उस
नाम को धारण करने वाला (चक्रभृत्) रथ। अर्थात दस रथ जिसके हैं (दशरथ), उसके पुत्र राम लक्ष्मण उलूकजिता - इन्द्र को जीतने वाले हैं। इस प्रकार कल्पित होने से असमर्थत्व दोष है।
1. वही, पृ. 236
2. काव्यप्रकाश, पू, 300
3. काव्यानु, पृ, 236
संदिग्धार्य होने से असमर्थ दोष इसका पदगत उदाहरण -
अलिङ्गितस्तत्र भवान्सम्पराये जयश्रिया ।
आशी: परम्परां वन्द्यां कर्णे कृत्वा कृपां कुरु ।
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काव्यानुशासन, पृ, 237
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