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________________ 238 और रामकथाओं में उनके गुण होने के उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं। असमर्थत्व - अवाचक होने से कल्पितार्थ होने से और सन्दिग्धता होने से विवक्षित अर्थ को न कहने की शक्ति ही असमर्थ दोष है। पदगतदोष का उदाहरप, यथा - हा धिक् सा किल तामती शशिमुसी दृष्टा मया यत्र सा, तदिच्छेदजाऽन्धका रितमिदं दग्र्य दिन कल्पितम् किं कुर्मः, कुशले सदैव विधुरो घातां न घेत्तामयं, तादृग्यामवतीमयो भवति मे नो जीवलोकोऽधुना।।' यहाँ दिन स पद प्रकाशमय अर्थ को कहने में अवाचक (असमर्थ) वाक्यगत, यथा - विजन्ते न ये भूपमालभन्ते न ते श्रियम्। आवहन्ति न ते दुःसे प्रस्मरन्ति न ये प्रियाम्।।2 यहाँ विभन ति (विभाग) सेवन को आलमति (विनाश)लाभ को आवहति (करोति - करता है)धारप को और प्रस्मरति (विस्मरप) स्मरप अर्थ को कहने मे अवाचक( असमर्थ है। 1. 2 वही, पृ. 231-232 वही. पृ. 236
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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