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________________ 233 आचार्य वाग्भट द्वितीय ने चौदह वाक्य - दोष माने हैं।। आ. हेमचन्द्र द्वारा स्वीकृत तेरह वाक्य - दोषों में हतवृत्तता को छोड़कर शेष बारह उन्हें समानरूप से मान्य हैं। इनके अतिरिक्त अर्थान्तरैकवाचक और अभवन्मतयोग - ये दो मम्मट सम्मत दोष भी उन्हें मान्य होने से उनके अनुसार चौदह वाक्य - दोष हैं। इनके लक्षप व उदाहरप प्रायः पूर्वस्वीकृत ही हैं। आचार्य भावदेवतरि ने 32 वाक्य दोष माने हैं, जो इस प्रकार है - (1) श्रुतिकटु, (2) च्युतसंस्कृति, (3) शिथिल, (4) अनुचितः, (5) नेयार्थ, (6) असमर्थ, (7) क्लिष्ट, (8) निरर्थक, (१) गाम्य, (10) संदिग्ध, (II) कथित, (12) विकृत (13) निहतार्थ, (14) विरुद्धमतिकृत, (15) समाप्तपुनरात्त, (16) अपलील, (17) अपयुक्त, (18) अविमृष्ट विधेयांश, (19) पतत्प्रकर्ष, (20 ) उपहृत - विसर्ग, (21) लुप्तविसर्ग, (22) विसंधि, (23) कुसंधि, (24) हतवृत्त, (25) न्यून, ( 26 ) अधिक, (27) अस्थानत्य, (28) भग्नप्रकम, (29) गर्भित, (30) अप्रसिद, (31) संकीर्प और (32) अक्रमा2 इनके लधप नामानुरूप 1. काव्यानुशासन - वाग्भट - पृ. 24 2 काव्यालंकारसार - 3/1-5
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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