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________________ जा चुका है। शेष जिन 7 दोषों - रसाद्यनुचिताक्षर, अक्रमता, अर्द्धान्तिरस्थैकपदता, अनिष्टान्यार्थ, अस्थानसमासदुः स्थित, अप्रोक्त वाच्य और व्यक्त-प्रसिद्धि को आ. नरेन्द्रप्रभसूरि ने मम्मटाचार्यानुसार स्वीकार किया है, उनके लक्षण व उदाहरण निम्न प्रकार से हैं रसाधनचिताक्षर यथा - यथा - अक्रमता - जहाँ पर क्रम का अभाव हो । - रस के प्रतिकूल वर्षों का प्रयोग | "अकुण्ठोत्कण्ठया पूर्णमाकण्ठं कलकण्ठि माम् । कम्बुकण्ठ्याः क्षणं कण्ठे कुरू कुण्ठार्तिमुदुर ।। यहाँ शृंगार रस के प्रतिकूल टवर्ग का प्रयोग होने से दोष है। - तुरङ्गमथ मातंगं प्रयच्छास्मै मदालसम् । कान्ति-प्रतापौ भवत: सूर्याचन्द्रमसो: समो || 2 यहाँ "मातंगमथ तुरंगम्" और "क्रान्ति-प्रतापी भवतः समौ चन्द्र विवस्वतो: " कहना उचित था, किन्तु इसके विपरीत कहने से दोष है। 1. अलंकारमहोदधि, पृ. 131 2. वही, पृ. 135 230 -
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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