________________
195
धृति : ज्ञान अथवा इष्ट प्राप्ति आदि ते उत्पन्न सन्तोष प्रति है। और वह शरीर की पुष्टि आदि का करने वाला होता है।
____ अर्म : तिरस्कारादि के कारप उत्पन्न बदला लेने की इच्छा अमर्ष कहलाती है। इसमें कम्पनादि अनुभाव होते हैं।
मरप : व्याधि आदि के कारप मरने की इच्छा करना मरप कहलाता है और वह इन्द्रियों को विकल करने वाला होता है।
मोह : प्रहारादि से उत्पन्न अर्थतन्य "मोह" कहलाता है। इसमें चक्कर आना आदि होता है।
निद्रा : थकावट आदि से उत्पन्न इन्द्रियों के व्यापार का अभाव निद्रा कहलाती है। इससे सिर हिलने लगता है।
___ सुप्त : प्रबलनिद्रा का आना सुप्त नामक व्यभिचारिभाव है। इसमें बर्राना (स्वप्नास्ति) और मन सहित सब इन्द्रियो का विषयों से अत्यन्त मुख्य ( मोहन )हो जाता है।
उगता : अपराध के कारप दुष्ट पुरूष के प्रति वध-बन्धादि दारा जो निर्व्यता का प्रकाशन है वह उगता कहलाती है।
___ हर्ष : इष्ट की प्राप्ति के कारप मन की प्रसन्नता हर्ष होता है। इसमें स्वेद, अश्रु और गदगना हो जाती है।