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________________ का स्पर्शादि करना रोमांच है। रोमांच - प्रिय के दर्शनादि से रोमों का खड़ा होना तथा अंगों स्वरभेद भेद है, यह हर्ष व हास्य को उत्पन्न करने वाला होता है। 2 - अश्रु - शोकादि के कारण उत्पन्न नयनजल अश्रु है, यह नथुने के फड़कने तथा नेत्रों के पोंछने के द्वारा अभिनेय है। 3 मूर्च्छा - प्रहार या कोपादि के कारण उत्पन्न इन्द्रियों की असमर्थता मूर्च्छा कहलाती है। इसमें व्यक्ति भूमि पर गिर जाता है। 4 मद आदि के कारण होने वाली शब्द की भिन्नता स्वर - 2. स्वेद श्रम आदि के कारण उत्पन्न होने वाला रोमजल का प्राव स्वेद है। पंखा झलने आदि के द्वारा इसका अभिनय किया जाता है। 5 वैवर्ण्य 6 है। इधर उधर देखने के द्वारा इसका अभिनय किया जाता है । " - 1. रोमांचः प्रियदृष्ट्यादेः रोमहर्षोऽगमार्जनै: हि. नाट्यदर्पण 3/47 स्वरभेदः स्वरान्यत्वं मदादेर्हर्ष - हास्कृत वही 3/47 तिरस्कारादि के कारण उत्पन्न, मुख का विकार वैवर्ण्य 187 33 अश्रु नेत्राम्बु शोकाद्यैर्नासास्पन्दा विरूक्षपैः । हि. नाट्यदर्पण, 3/48 4. मूर्च्छनं घात - कोपापै रवग्ला निर्भूमिपात कृत । वही, 3/48 5. स्वेदो रोमजलतावः श्रमादेर्व्यजनगृहे:! वही, 3/49 6. छायाविकारो वैवर्ण्य पादेदिनिरीक्षणैः । हि. नाट्यदर्पण 3/49
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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