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अमर्ष, रोमांच, वेपथु, स्वेद, चपलता, मोह, आवेग, कम्पना दि इसके व्यभिचारी भाव होते हैं।
नरेन्द्रप्रभसरि आ. हेमचन्द्र के समान रोद्र रस का वर्णन करते . लिखते हैं कि स्त्री-हरपादि विभाद, नेत्र लालिमा आदि अनुभाव, उगता
आदि व्यभिचारी भावों से युक्त कोध रूप स्थायिभाव वाला रौद्र रस होता है।
___ वाग्भट द्वितीय का रौद्र रत विवेचन हेमचन्द्र का अनुगामी
इस प्रकार रौद्ररस सम्बन्धी विवेचन में सभी आचार्यों में साम्य
द्रष्टिगत होता है।
वीर - रस : वीररस का स्थायिभाव उत्साह है। आचार्य भरत ने उत्साह नामक स्थायिभाव को उत्तम प्रकृतिस्थ माना है। उनके अनुसार वीर रस की उत्पत्ति अंसमोह, अध्यवसाय, नीति, विनय, अत्यधिक पराक्रम, शक्ति, प्रताप और प्रभाव आदि विभावों से होती है।
I. हि. नाट्यदर्पप, 3/15 व विवरप 2. अलंकारमहोदधि, 3/19 3 काव्यानुशासन, वाग्भट, पृ. 55 +.' नाट्यशास्त्र, 6/66