SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8 क 8 १ ख १ ग कार्यवश विप्रलम्भ लिए प्रवास (दूसरे स्थान पर जाता है, ऐसी दशा में होने वाले विप्रलम्भ को कार्यवश विप्रलम्भ कहते हैं । यथा "याते द्वारवती -" इत्यादि पद्य में किसी कार्यवश श्रीकृष्ण के द्वारिका चले जाने पर राधा का विरह वर्णित हुआ है। 3. - शापवर्श विप्रलम्भ शाप के कारण दीर्घकाल तक प्रियतम के प्रवास रहने से उत्पन्न विरहावस्था को शापवश विप्रलम्भ कहते हैं। इसके लिये हेमचन्द्र ने कालिदासकृत मेघदूत काव्य को ही उदाहरण बनाया है। 2 - जब किसी कार्यवश प्रियतम दीर्घकाल के - I. वही, पृ. 113 2. वही, पृ. 113 वही, पृ. 113 संभ्रमवश विप्रलम्भ - विप्लववश होने वाली व्याकुलता को संभ्रम कहते हैं यथा * किमपि किमपि 3. इत्यादि पद्य में मकरन्द के 153 युद्ध मैं सहायतार्थ गये हुए माधव की विह्वलता वर्पित है। सोदाहरण विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया है। इस प्रकार आचार्य हेमचन्द्र ने विप्रलंभ श्रृंगार के भेद - प्रभेदों का
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy