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________________ 152 328 मान विपलंम भी दो प्रकार का होता है- (1) प्रपय-जन्य मान और(2) ईाजन्य मान।। प्रेमपूर्वक वशीकरप को प्रपय कहते हैं अर्थात प्रेम का परिपक्व रूप ही प्रपय है और उस प्रपय के भंग हो जाने पर जो मान होता है, वह प्रपयमान कहलाता है। यह प्रपयमान स्त्री (नायिका) का भी हो सकता है, पुरूष ( नायक) का भी हो सकता है और स्त्री-पुरुष दोनों का भी हो सकता है। उदाहरपार्थ - "प्रपयकुपिता..." इत्यादि पप नायिका के प्रपयमान का, "अस्मिन्नेव लतागृहे.... इत्यादि नायक के प्रफ्यमान का एवं "पपयकुवियाफ..5. इत्यादि पध उभयगत प्रपयमान का उदाहरप है। ___ईामान केवल नायिकागत ही होता है। "संध्यां यत्प्रपिपत्य.. इत्यादि इसका उदाहरप है। १४ प्रवास विप्रलम्भ तीन प्रकार का होता है-( क ) कार्यवश विप्रलम्भ (ख) शापवंश विप्रलम्भ, (ग) संभमवश विपलम्भार - - --- - 1. वही, पृ. 112 2. काव्यानुशासन, पृ. 112 प्र वही, पृ, 112 + वही, पृ. 12 5. वही. पृ. 112 वही. पु. ॥3 __ वही. प. ।।3
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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