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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
श्रेष्ठ आसवदेवसुत श्री सपालसुत गंधिबी बीकेन आत्मनः श्रेयाथै श्री पार्श्वदेव विकारितं, चन्द्रगच्छे श्री यशोभद्रसूरीभिः प्रतिष्ठितं । (३) स० १२७२ बर्षे ज्येष्ठ वदी २ रवौ अद्येह टिंबन के मेहरराजश्री रणसिंह प्रतिपत्तौ समस्त सन्धैन श्री महावीर बिम्बं कारितं प्रतिष्ठित श्री चन्द्र गच्छीय श्री शांतिप्रभ सूरिशिष्यैः श्री हरिप्रभ सूरिभिः ।
(४) सं० १३४३ माघ सुदी १० गुरौ गुर्जर प्रार्वाट ज्ञातीय ठ० पेथड श्रेयसे तत्सुत पाल्हणेन श्री नेमिनाथ बिम्बं कारितं प्रतिष्ठित श्री नेमिचन्द्र सूरि शिष्य श्री नयचन्द्र सूरिभिः ।
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(७) वालू या बूला - सोनगढ़ से उत्तर १६ मील व भरमा - रसे पश्चिम उत्तर २२ मील । इसीका प्राचीन नाम वल्लभीपुर था (नोट जहां देवर्द्धिगण साधुने ९०० वीर सं० के अनुमान श्वेतांबर आगमोंकी रचना की थी ) कुछ ध्वंश स्थान हैं। शिक्के व ताम्रपत्र मिलते हैं ।
(८) तेलुजाकी गुफाएं -काठियावाड़ के दक्षिण पूर्व सेडुंजय पहाड़ीके मुखपर तेलुगिरि नामकी पहाड़ी है । यहां बौद्धोंकी ३६ गुफाएं हैं। वर्तमान में यहां दो नवीन जैन मंदिर हैं ।
(९) द्वारिकापुरी - पोरबंदर स्टेशन उतरकर समुद्रतटसे जहाज पर थोडी दूर चलकर द्वारिका आती है टिकट ) है | जहाजसे उतरकर द्वारिकापुरीके स्थान मिलते हैं । यहां एक दिगम्बर जैन मंदिर है भगवान नेमिनाथजीकी प्रतिमा व चरण चिन्ह बिराजमान हैं । यह श्री नेमिनाथ भगवानका जन्मस्थान प्रसिद्ध है । ( देखो तीर्थयात्रादर्शक ब्र० गेबीलाल कृत )