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मध्य भारत।
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मसजिदमें बदला गया है। खुदाई करनेपर एक नीचेको कमरा मिला है जिसमें कई नग्न जैन मूर्तियें हैं और एक लेख संवत ११६५ या सन् ११०८का है। ये मूर्तिये कायोत्सर्ग तथा पद्मासन दोनों प्रकारकी हैं। उत्तरकी वेदीमें सात फण सहित श्री पार्श्वनाथजीकी पद्मासन मूर्ति है। दक्षिणी भीतपर पांच वेदियां हैं जिनमें दो खाली हैं। उत्तरकी वेदीमें दो नग्न कायोत्सर्ग मूर्तियां हैं। मध्यमें ६ फुट (इंच लम्बा आसन एक मूर्तिका है । दक्षिण वेदीमें दो नग्न पद्मासन मूर्तियां हैं।
उरवाही द्वारपर जैन मूर्तियें-उरवाही घाटीकी दक्षिण ओर २२ नग्न मूर्तियां हैं उनमें ६ लेख संवत १४९७से १५१० अर्थात सन १४४० और १४५३के मध्यके तोमरवंशी राज्यकालके हैं। इनमें नं० १७-२० व २: मुख्य हैं। नं० १७में श्री आदिनाथकी मूर्ति है, वृषभ चिह्न है, इसपर वड़ा लेख नं० १८ संवत १४९७ या सन १४४० का है-डंगरसिंहदेवके राज्यमें स्थापित । सबसे बड़ी मूर्ति नं० २० है जो वावरके कथन अनुसार ४० फुट है, परन्तु वास्तवमें ५७ फुट ऊंची है। पग ९ फुट लम्बा है उससे तीनगुणी लम्बाई है। इस मूर्तिके सामने एक स्तम्भ है जिसके चारों तरफ मूर्तिये हैं। नं० २२ श्री नेमिनाथनीकी मूर्ति ३० फुट ऊंची है।
दक्षिण पश्चिम समूह-उरवाहीकी भीतके वाहर एक थंभा तालके नीचे ५ मूर्तियें हैं । नं० २-एक सोई हुई स्त्रीकी मूर्ति ८ फुट लम्बी है जिसका मस्तक दक्षिणको व मुख पश्चिमको है।
सं० नोट-शायद यह श्री महावीरस्वामीकी माता त्रिशलाकी मूर्ति हो । नं० ३-एक मूर्ति है निसमें स्त्रीपुरुष बैठे हैं, वच्चा गोदमें है। कनिंघम कहते हैं कि मैं समझता हूं कि यह श्री महा