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________________ ६६ ] प्राचीन जैन स्मारक । वीरस्वामी राजा सिद्धार्थ और त्रिशला सहित हैं । उत्तर पश्चिमी समूह-दोंधा द्वारके उत्तरमें श्री आदिनाथकी मूर्ति है । लेख सं० १९२७ या सन् १४७० का है । I दक्षिण पूर्वी समूह - गंगोलातलावके नीचे यह सबसे बड़ा और प्रसिद्ध समूह है । यहां १८ मूर्तियें २० फुटसे ३० फुट 'ऊंची हैं तथा बहुतसी ८ फुटसे १५ फुट उंची हैं। ऊपरसे लेकर आध मीलकी लम्बाई में कुलपहाड़ीपर ये मूर्तिय हैं । इनका वर्णन नीचे प्रकार है ព नं० १० नाम तीर्थकर अप्रगट आदिनाथ व ४ और आदिनाथ नेमिनाथ आदिनाथ ... पद्मप्रभु ... आदिनाथ चन्द्रप्रभु २ और चन्द्रप्रभु सम्भवनाथ और च १ ने मनाथ सम्भवनाथ महावीर आसन ... कायोत्सर्ग 37 " " 95 १५ पद्मासन कायोत्सर्ग | २० 97 पद्मासन ६ कायोत्सर्ग २१ १२. १.२ ་་ पद्मासन ऊंचाई ३० फुट । 21 कार्य'त्सर्ग ७ १४ ૨૪ १.४ 91 पद्मासन कायोत्सर्ग २१ २१ फुट ग्रुपभ " 19 ११ " 99 "1 19 चिह्न 31 शंख उपभ कमल सम्वत् शंव. १ २१ फु: | घोडा सिंह ५.३० १५३० १५२५ १५२५ १५२५ १५२६ अर्द्धचंद्र १५२७ घोड़ा १५९५ १९२५
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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