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________________ प्राचीन जैन स्मारक | मुख्य २ स्थान | (१) वाघ - जि० अमझेरा । मनावरके पास ग्रामके पश्चिम ४ मील बौद्ध गुफाएं हैं जिनको पांच पांडव कहते हैं । यह अजंटाकी गुफाओंके समान ६ तथा ७ शताब्दीकी हैं । “६२ ] (२) वरो - ( बड़नगर ) जि० अमझेरा । यह ग्वालियर राज्यमें • बहुत प्राचीन स्थान है | अब छोटा नगर है, परन्तु इसके पास प्राचीन नगरके ध्वंश शेष हैं जो पथारी नगर तक चले गए हैं । यह ग्राम गयानाथ पहाड़ीकी तलहटीमें है। यह पहाड़ी विंध्यका भाग है जो भिलसाके उत्तर तक आती है । सरोवरोंके निकट हिंदू तथा जैनोंके मंदिर हैं । एक विशाल जैन मंदिर है जिसको जैन मंदिर कहते हैं इसमें सोलह वेदियां हैं जिसमें जैन मूर्तियां हैं । - मध्यमें किसी मुनिका समाधि स्थान है । पन्नाके राजा छत्रसालने १७ वीं शताब्दीमें इस मंदिरको नष्ट किया । (३) भिलसा नगर - इसके निकट बौद्धोंके ६० स्तूप सन् ई० से तीसरी शताब्दी पूर्वसे १०० सन् ई० तक हैं । प्रसिद्ध स्तूप- सांची, अन्धेरी, भोजपुर, सातधारा व सोनारी (भोपाल) में हैं । (४) वीशनगर - भिलसाके उत्तर पश्चिम प्राचीन नगर है । उसको पाली में चैत्यगिरि लिखा है । यहां बौद्धोंके स्मारक हैं. । यहां उज्जैन के क्षत्रपोंके, नरवरके, नागोंके व गुप्तोंके सिक्के पाए गए हैं । जैन शिला लेखों में इसको भद्दलपुर कहा है व १० वें तीर्थंकर - सीतलनाथका जन्म स्थान माना गया है । वार्षिक मेला होता है । • यह नगर - सुंग राजा अग्निमित्रका राज्य स्थान था ।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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