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________________ ५६ ] प्राचीन जैन स्मारक । हो गए हैं । उनमें प्रसिद्ध ग्यासपुरके मंदिर हैं, प्राचीन मंदिर खजराहाके हैं तथा उदयपुरके मंदिर हैं। जैनियोंके सोलहवीं शतावीके मंदिर ओर्छा, सोनागिरि (दतिया) में हैं । पूर्वी हिन्दी भाषा - इस मध्यप्रांतमें यह भाषा अधिक वोली जाती है। यह उसी प्राचीन भाषाका अपभ्रंश है जिस भाषा में सन ई० से ९०० वर्ष पूर्व श्री महावीर भगवानके तत्व वर्णन किये जाते थे । यही भाषा बादमें दिगम्बर जैनियोंके मुख्य शास्त्रोंकी भाषा होगई । इस हिन्दीका अवघी भाग मध्यभारतमें व बघेली भाग बधेलखंडमें पाया जाता है । वघेलीमें बहुत बड़ा साहित्य है जिसकी रक्षा रीवांके राजालोग सदा करते आए हैं । बधेली हिन्दी बोलनेचाले १४०१०१३ हैं । जैन धर्म - ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी में मध्यभारतके उच्च वर्णोंमें जैनधर्म मुख्यतासे फैला हुआ था । उनके मंदिर व मूर्तियोंके शेष ध्वंश इस प्रांतमें सब तरफ पाए जाते हैं। अभी भी प्राचीन मंदिर खजराहामें, सोनागिरिमें है तथा कई यात्राके स्थान हैं जैसे बावनगजाकी मूर्ति बड़वानीमें । सन् १९०१ में यहां दिगम्बर जैनी ९४६०५ व श्वे० जैनी ३५६७५ थे । मध्य में भारतके विभाग । (१) वघेलखंड -- इस बघेलखंडमें रीवा, वन्दैर, कैमूर, खुंजना व सिरवू चट्टानें शामिल हैं। प्राचीन बौद्ध पुस्तकोंमें व महाभारत तथा पुराण में इस बघेलखंडका सम्बन्ध हैहय या कलचूरी या चेदी
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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