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________________ ५२] पास प्राचीन जैन स्मारक । ww दूसरा भागमध्य भारत-प्राचीन जैन स्मारक। Imperial Gazetteer of Central' Indin Cal. 1908. इम्पीरियल गजेटियर मध्य भारत कलकत्ता सन् १९०८के अनुसार तथा भिन्नर गजेटियरोंके आधारसे नीचेका वर्णन लिखा जाता है इस मध्य भारतकी चौहद्दी इस भांति है-उत्तर-पूर्वमें संयुक्त प्रदेश, पूर्वमें मध्यप्रांत, दक्षिण-पश्चिममें खानदेश, रेवाकांठा, पंचमुहाल । यहां ७८७७२ वर्गमील स्थान है। इतिहास-गौतमबुद्धके समयमें वौद्धमतकी पुस्तकोंके आधारसे भारतवपमें सोलह मुख्य राज्य थे। उनमें अवन्ती-राजधानी उज्जैन व वत्सदेश-राज्यधानी कौसाम्बी भी थे। उस समय उत्तरसे दक्षिणतक अर्थात् कौशल देशके श्रावस्तीसे दक्षिणमें पैथन तक पुरानी सड़क थी। वीचमें उज्जैन और महिस्मती (महेश्वर) में ठहरनेके स्थान थे। इस मध्य भारतपर जैनधर्मधारी महाराज चंद्रगुप्त मौर्य व उसके वंशजोंने सन् ई०से ३२१ वर्ष पूर्वसे २३१ वर्ष पूर्वतक राज्य किया। चंद्रगुप्तके पीछे उसके पुत्र विन्दुसारने ( २९७ से २७२ पूर्वतक ) फिर महाराज अशोकने राज्य किया। अशोकने भिलसाके पास सांचीमें और नागोदके भीतर भारहुतमें स्तूप स्थापित कराए। मौर्योंके पीछे सुंगवंशने राज्य किया, उसकी राज्यधानी पाटलीपुत्र थी । इसी वंशमें अग्निमित्र राजा हुआ है जो मालविकाग्निमित्र नाटकका वीर योद्धा था। इसकी राज्यधानी विदिशा (भिलसा) थी।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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