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________________ मध्य 'प्रान्त [४५ ___ यहां दो लेख अशोककी लिपिके समान ब्राह्मी लिपिमें देखे गए हैं। जो लेख सीतावेंगा गुफामें हैं वह सन् ई० से पहले ' तीसरी शताब्दीके किसी नाटक काव्यकी प्रशंसामें हैं। जोगीमाराका लेख मागधी भाषाकी चार लाइनमें है इसमें देवदासी और किसी चित्रकारका नाम है। इस गुफाकी चौखटपर चित्रकारी है जिसका वर्णन इस प्रकार है भाग (१)-एक वृक्षके नीचे एक पुरुपका चित्र हैं, बाई तरफ अपसराएं व गंधर्व हैं । दाहनी तरफ एक जलस हाथी सहित है। __ भाग ( २ मे पुरुग, ग. चक नशा अनेक त्याकारक आभूषण हैं। भाग (३)-इसका आधा भाग स्पष्ट नहीं है । उसमें पुप्प, प्रासाद, सवस्त्र मनुष्य हैं। इसके आगे एक वृक्ष है उनपर एक. पक्षी है और एक पुरुप, बालक है । इसके चारों ओर बहुतसे मनुष्य हैं जो खड़े है, स्त्र रहित हैं जैसा वालक वस्त्र रहित है। मस्तककी वाई तरफ देशोंमें गांठ लगी है। भाग (४)-एक पुरुप पद्मासनसे बैठा है जो स्पष्टपने नग्न है इसके पास तीन मनुष्य सवस्त्र खड़े हैं इसीके बगलमें ऐसे ही पद्मासन नग्न पुरुष हैं और तीन ऐसे ही सेवक हैं । इसके नीचे एक घर है जिसमें चेत्यकी खिड़की है सामने १ हाथी है और तीन पुरुष सवस्त्र खड़े हैं । इस समुदायके पास तीन घोड़ोंसे जुता हुआ एक रथ है, ऊपर छतरी है । दूसरा एक हाथी सेवक सहित है । इसके दूसरे आधेमें भी पहलेके समान पद्मासन पुरुप
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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