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________________ मध्य प्रान्त । [४३ देवीके प्राचीन मंदिरको भूमिपर एक झोपड़ा है जिसमें एक जैन मृति ई आमन है। (१) धनपुर-जमींदारी पंडरा-यहाँने उत्तर १ नील। यह . भी प्रसिद्ध प्राचीन स्थान है। धनपुर और रतनपुर दोनोंको हत्य गजपूतोंने बसाया था । भीतर मरोबरसे उत्तर आध नील जाकर के छोटे२ टीले हैं जो प्राचीन ध्वंश मकानोंसे ढके हुए है। इसके पश्चिन ॥ नीलपर छ: नंडिगेंना समूह है । सरोकरके दूसरे तटपर चार बड़े मंदिरोंका नमूह है जो देखनेसे जैनके नाम होने हैं । इमसे थोड़ी दूर एक संभवनाथके नामने सरोवर है, जिसके नटपर बहुतसी जैन मृतियोंक खंड हैं। ये सब नंदिर कुछ पापा कुछ इट और पापाणदोनोंक हैं। पुरानी रीनिकी बहुत बड़ी है जैसी मिग्पुरमें मिलती हैं। कुछ प्राचीन बत्तुएं पेन्डरामें लाई गई है। यहां ४ वर्गमील तक खंड स्थान हानिघम रि० नं. ७ पत्र २३७) (१) खरोद-महानदीने १ मील द अकलतरा सड़कपर लिवरीनारायणले २ मील ! यहां प्राचीन मंदिर हैं। सबसे बड़ा लक्ष्मेश्वचा है। इसमें चेदी सं० ९३३ या सन् १९८१का पुगना शिलालेख है जिसमें शलिंगगनने लेकर रत्नदेव तृतक हैहय राजाओंग पूर्ण नाम हैं। . (९) मलतर या मलतार-ता० विलासपुर-यहांसे दक्षिण पूर्व १६ नील | यह लीलागर नदीसे ८६० फुट ऊंचा है प्राचीन कलमें प्रसिद्ध स्थान था । बहुतसे प्राचीन मंदिर है जहां बड़ीर नग्न जैन मूर्तियां हैं। उनमेंस बहुतसी उठा ली गई हैं बहुत
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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