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प्राचीन जैन स्मारक। यहां एक रत्नकी जैन मूर्ति मिली थी जो ६०००) में दीगई थी। ये सब स्मारक प्रगट करते हैं कि यह आरङ्ग जैनधर्मका बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध स्थान था। यहां अग्रवाल बनिये रहते हैं। (आरङ्गके लेखोंके लिये देखो कनिंघम रिपोर्ट १७ सफा २१ यहां आठवीं शदीके दो ताम्रपत्रोंका वर्णन है) तथा देखो (वगलर रिपोर्ट जिल्द ७ सफा १६०)।
(२) वड़गांव-ता. महासमुद्र । यहांसे उत्तर पूर्व १०मील महानदीकी दाहनी तरफ । यहां अब भी रतनपुरके प्राचीन हैहय राजवंशीके वंशज रहते हैं।
(३) कुर्रा या कुंवर-रायपुरके उत्तर १४ मील । मंधर स्टेशनसे ४ मील । दक्षिण तरफ मिचनी सरोवर तटपर अब चार छोटे मंदिर हैं । पहले ग्राममें यहां बहुत बड़े २ मंदिर थे उनमें मुख्य दो जैन मंदिर थे जिनको खूबचन्द जैन वणिकने कुल्हान नदीकी घाटी बनानेके लिये रीड कमिशनरको दे दिये थे। कई खुदे हुए पाषाण अब भी पड़े हुए हैं । कुछ जैन मूर्तियां भी रह गई थीं जो ग्रामके इधर उधर विराजित हैं। खूबचंद स्वयं कहते . हैं कि उसने स्वयं इस ग्राममें तीन तथा मलकाममें दो जैन मंदिर गिरवा दिये थे।
(४) सिरपुर-(शिलालेखमें श्रीपुर ) महानदीके दाहने तटपर । रामपुरसे पूर्व उत्तर ३७ मील । यह कभी एक बड़ा नगर था। यहां नौमी शताब्दीकी बनी हुई सुन्दर ईटे पाई जाती हैं।
(५) रायपुर-यहां दुधाधारी मठ है, जिस मंदिरके आंगनमें सिरपुरसे लाए हुए पाषाण खंड पड़े हैं। ये बहुत सुन्दर बने हैं