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२०]. प्राचीन जैन स्मारक। मध्यकी छत्रसहित श्री आदिनाथजीकी है। आसनपर बैलेंका चिन्ह हैं, दाहनी व वाई तरफकी मूर्तियोंके आसनपर सर्पके चिन्ह हैं तथा दाहनी मूर्तिपर, सात फण व वाईपर पांच फण हैं । ये तीन मूर्तियां प्रगटरूपसे जैनकी हैं इससे मुझे पक्का विश्वास होता. है कि यह पटेनीदेवी जैनियोंकी है । " I feel satisfied that the enshrined goddess must belong to Jains.” इस देवीके दोनों तरफ कायोत्सर्ग आसन नम जैन मूर्तियोंकी दो लाइनें हैं । ये अवश्य जैनकी हैं, 'यह मंदिर लेखके समयसे बहत पुराना है। ( कनिंघम रिपोर्ट नं० ९)
स नोट-मालूम होता है कि मध्यमें देवीकी मूर्ति न होकर किसी तीर्थकरकी जैन मूर्ति होगी जिसे देवी मान लिया. गया है। इसकी जांच अच्छी तरह होनी चाहिये।
(१०) विलहारी-प्राचीन नगर-कटनीसे पश्चिम १० मील भरहुत और जबलपुरके मध्यमें प्राचीन नाम पुष्पवती है। यहां राना गोविंदराव संवत ९१९ या सन् ८६२में राज्य करते थे।
(११) रूपनाथ-वहुरीबन्दसे दक्षिणपश्चिम १३ मील तथा सलेमाबाद स्टे०से पश्चिम १४ मील। यहां रामा अशोकका शिलास्तम्भ है।
. (१२) भरहुत-यहां बौद्ध स्तूप है,। यह जबलपुर और अलाहाबाद के मध्यमें है। सतना और उछहराके मध्य रेलसे २ मील करीब है। अलाहाबादसे १२० व जबलपुरसे १११ मील है।