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प्राचीन जैन 'स्मारक ।
[३] जबलपुर जिला ।
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इसकी चौहद्दी इस प्रकार है- उत्तरपूर्व मैहर, पन्ना, रीवां राज्य; पश्चिम दमोह दक्षिण नरसिंहपुर, सिवनी, मांडला | यहां ३९१२ वर्गमील भूमि है । इतिहास - नवलपुर से थोड़ी दूर जो तिवार ग्राम है वही प्राचीन नगरं त्रिपुरा या करणवेलका स्थान है जो कलचूरी राज्यकी राज्यधानी था । (देखो शिलालेख नवलपुर, छत्तीसगढ़ और बनारस कनिंघम रिपोर्ट नं ० ९) ये हैहय राजपूत से सम्बन्ध रखते हैं । इस वंशकी एक शाखा रतनपुर में थी जो छत्तीसगढ़ पर राज्य करती थी । इस वंश के राजाओंका युद्ध कन्नौ के राठौड़ व महोबा के चंदेल तथा मालवाके परमारोंके साथ हुआ है । जबलपुरमें पहले अशोकका राज्य था । फिर तुंग वंशने ११२ वर्ष तक सन् ई० से ७२ वर्ष पहलेतक राज्य किया। फिर अंधोंने सन् २३६ तक, फिर गुप्तोंने जो परिव्राजक महारान कहलाते थे। इनके राजाओंके ६ लेख सन् ४७५ और १२८ के - मध्यके पाए गए हैं।
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जबलपुरको पहले दाहल या दमाला भी कहते थे । कलचूरी वंशका सबसे पुराना वर्णन १८० सन्के बुद्धराजके लेखमें है । अनुमान १९ वीं शदीके यह गोंदराजाओंके अधिकारमें था । यह गढ़ी मांडलाका वंश था । राज्यधानी गढ़ी थी। १७८१ में मरहठोंने कबजा किया ।
पुरातत्व - रीढ़ी, छोटा देवरी, सिमरा, पुरेनी, तथा नांदचन्दमें पुराने स्थान हैं। बड़गांवके ध्वंश स्थान जैनियोंके हैं । बहरी नंद, रूपनाथ व तिगवानके ग्रामोंमें भी प्राचीन स्थान हैं ।