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________________ मध्य प्रान्त । [ १३ दि० जैन मंदिर हैं । यहां श्री महावीरस्वामीकी बृहत् मूर्ति बहुत ही मनोज्ञ व दर्शनीय है जिसका आसन ४ फुट ऊंचा है व मूर्ति १२ फुट ऊंची है। यहां २४ लाइनका शिलालेख है जो १७०० सन्का पन्नाके बुन्देल राजा छत्रसालके समयका है। पहाडीके नीचे जो सरोवर है उसको वर्द्धमान सरोवर कहते हैं। यह सं० १७१७ का है । यह जैनियोंका माननीय क्षेत्र है । ग्राममें बड़ा भारी जैन मेला प्रतिवर्ष लगता है । दमोह के परवार जैनी इसके अधिकारी हैं । (२) नोहटा - दमोह से दक्षिण पूर्व १३ मील । यह. पहले १२ वीं शताब्दी में चंदेलोंकी राज्यधानी थी। यहां जैन मंदिरों के बहुत खँडहर हैं। स्तंभ व खंड ग्रममें मिलते हैं । जैन मूर्तियां 1 भी यत्र तत्र पड़ी हैं । इनमें श्री चन्द्रप्रभ भगवानकी मूर्ति भी है । एक जैन मंदिर ग्रामके दक्षिण १ मील दूर सड़कपर है जो चहुत पुराना है । (३) सिंगोरगढ़ - दमोह से दक्षिण पूर्व २८ मील । यह एक पहाड़ी किला है । जबलपुर - दमोहकी सड़कपर सिंग्रामपुर ग्रामसे ४ मील है | महोवाचे चंदेलराजा वेलाने बनाया परन्तु कनिंघम साहब ८ लाइनके चौकोर खंभेके लेखपरसे इसे गजसिंह प्रतिहर या परिहर राजपूत द्वारा बनाया गया है ऐसा कहते हैं । उस लेखमें है कि गजसिंह दुर्गादेव संवत् १३६४ व सन् १३०७ है । यह परिहार राजपूत हैंहय राजपूतोंके कलचूरी या चेदी वंशकी सन्तान थे । 1
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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