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१२] प्राचीन जैन सारका यह ध्वंश स्थान है। यहां एक ऊँची मीनार १०० फुट ऊँचाई पर है । भूमि १५ फुट वर्ग हर तरफ है । इसको राजा मर्दानसिंहने अपनी स्त्रीकी इच्छासे सागर और दमोहको देखनेके लिये। बनाया था।
(6) सागर-यहां नैनियोंकि कई मंदिर हैं। १९०१ में संख्या १०२७ थी। यहांकी बड़ी झलको जिसको सागर कहते हैं लपला बंजाराने बनाया था।
कोजिन साहबकी रिपोर्ट सन् १८९७ से नीचेका हाल विदित हुआ।
(७) मदनपुर-सागर और ललितपुरके मध्यमें प्राचीन नगर है। यहां छः प्राचीन वंश मंदिर हैं जिनमें नगरके उत्तरकी ओर सबसे पुगने तीन जैन मंदिर हैं। झीलके उत्तर पश्चिम दो व 'उत्तर पूर्वमें एक है। यहां संवत् १२१२ से १६९१ तक के कई शिलालेख हैं।
[२] दमोह जिला। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-पश्चिममें सागर दक्षिणपूर्व नरसिंहपुर, जवनपुर, उत्तरमें पन्ना और उत्तरपुर राज्य । यहां भूमि २८१६ वर्गमील है। यह निना १०वीं शताब्दीमें महोबा के चन्देश रानाओंके राज्यमें शामिल था। चंदेलोंके बनवाए पुराने मंदिर है। १३८३में यह देहल.के गलकोंके हाथमें था। यहाँके स्थान मानने योग्य हैं।
(१) कुंडलपुर-पहाड़ी। दमोहसे पूर्व २० मील। यहां ११