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________________ ं ] प्राचीन जैन स्मारक । हुए थे । मालवाके होशंगशाहने इसके देशपर आक्रमण किया तब नरसिंहराव हार गया और मारा गया । १६ वीं शताब्दी में गढ़ मांडलाके गोंद वंशके ४७ वें राजा संग्रामशाहने अपना राज्य परगढ़ों या जिलोंमें जमा लिया था, जिनमें सागर, दमोह, मोपाल, नरबदाधारी, मांडला और शिवनी भी गर्भित थे। ऐसा निश्चय होता है कि मांडना यह वंश सन् ई० ६६५ के अनुमान प्रारंभ हुआ था तब जादोराय राज्य करता था । यह प्राचीन गोंद रामाका सेवक था । इसने उसकी कन्या विवाही और राज्याधिकारी होगया । सन् १४८०के संग्रामशाहके होने तक यह वंश एक छोटा राजासा बना रहा। इनके २०० वर्ष पीछे गोंदराजा बख्त बुलन्द "जिसकी राज्यघानी छिंदवाड़ा में देवगढ़ र थो" दिहली गया था और उसने बहांका ऐश्वर्थं देखकर अपने राज्यको उन्नत करना चाहा । इसने नागपुर नगर बसाया जो उसके पीछे राज्यधानी होगया | देवगढ राज्यका विस्तार वेतल, छिंदवाडा, नागपुर, शिवनीका भाग, भंडारा और बालाघाट तक था । दक्षिणमें कोटसे घिरा नगर चांदा रायपुर शपाके चेी राजा (१) लक्ष्मीदेव (२) सिंहाना (३) रामन (५) ब्रदेष सन १४०२ ई० (५' केशवदेव १४२० (६) भुनेश्व देव १०३८ (०) मामसिंहदेव १४६ : ८) सनोडिदेव १४७० (९) सुप्तर्निहदेव १५०८ (१०) मरतनिदेव १२१८ (११) चामुंडा देव १००८ (१२) वंशीसिहदेव १०६३ (१३) धनसिंडदेव १५८२ (०४) जैनहित्र १९०३ (१५) कलेनिदेव १३१५ (१६) यत्रदेव १६३३ (१७) सोमदेश १६४० (१८) बल्देवसिंहदेव १९६३ (१८) उमेदनिहदेव १६८५ (२०) वनश्रीरवि देव १७१४ (२१) अमरसिंहदेव १००८ ।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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