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________________ - - - . मध्यःप्रान्त दूसरे देश थे। इस रानाने उन युद्धोंमें भाग लिया थी जो मालवा और खानदेशके रानाओंके और बहमनी बातशाहोंके साथ स. नोट-नेदः प रष्ट्रकूट दानों जैन धर्मक +क्त थे इसे दोनो सम्बन्ध भा होते थे। कर चू शब्दके अर्थ होते है-नर-देह, देहोंशा चानेवाला मुक्ति गामा. हैहर शास्त्वमें अहया अहहय होगा जिसका भी भाष पालेको च नवा है । चेदीका अर्थ आत्मको चेतानेवाला. ये तीनों नाम इम वशको जैन धर्मा सिद्ध करते हैं। " Descriptive list of insuiptions of C. P. & Berur by Himlil B.A. 1916. " नामकी पुस्से विदित हुमा कि प.ले जो काकवर्णसे विजयसिंहदेव तक राजा की सूची दी है वह त्रिपु-के कलचूरी गजाओं की है। तभी शाखाके कलचूरी गजाओं की सूची नीचे प्रमाण है, इनको महायोशर के हैहय वंशी भी कहते थे (१) कलिंगाज त्रिपुमके कोक्ल द्वि. का पुत्र (२) कमल (8) रलराज या ग्लदेव (6) पृदेिव (५) जाजलदेव सन् १३४ ई०६) रलदेव द्वि० (७) पृथ्व देव द. ११४५ ) ज.जन्लदेव 'द. ११९९ (e) ग्लदेवत. ११४१ (१०) पृथ्वोदेव व० ५१८० (11) भसिंह १२.० (१२) नासिंहदेव १२२१ (१३) मृसिंहदेव १२५१ (१४) प्रतापसिंहदेश १२७९ (५) जसिंहदेव १३१५ (18) धरमसिंहदेष १४४ (१७) जगन्नाथसिंह ४६८ १८) वीरसिंहदेव १४०७ (१७) कमलदेव १४२६ (२०) संकरसहाय १४३६ (२१) मोहनसहाय- १४५४ (२२) ददुपहाये ४७२'(२३) पुरुषोत्तमसहाय 1४७ (९४) बाहरसहाय या बाहरेन्द १५१९ (२५) वल्याणसंहाय १५४६ (२६) लक्ष्मणहाय १५८३७) मुकुन्दसहाय १५९१ (२८) संकरमहाय' १६०६ (९९) निमुवनसंहाव १६१७ (३०) जगमोहनहाय १६३२ (a) मादितिसहाय १९४५ (३२) जीतक. १९५९ (३३) तख्तसिंह ६.५ (31) रायसिंहदेव १९८४ (54) मरदारसिंह १२० (४६) धुनायसहाय १७
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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