SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन सारक। खैरलाके रामा नरसिंहरायके पास (जैसा फारसी कवि फरिशनाने कहा है) बहुत सम्पत्ति व शक्ति थी तथा गोंदवानाकी सर्व पहाड़ियां सन् ९.३३ सिद्ध होता है । गष्ट्रकूट गजा अमेघवर्ण सायं कोल्ड प्रथमका परपोता अपनी माता गोन्दम्बाकी तरफ था तथा लक्ष्मणक ही वंशका था । मेरो पनि बन्दादेवी का पिता लश्नग था । चौथे करितलाईके लेखमें युवराग्देवके पुत्र लक्ष्मण राजाका नाम आया है जिसने अनुमान ९५०से ९७९ तक गज्य किया था । पांच वनारसमें गजघाटक शिले ईहर घंशा कदवका लेख संवत ७२४ का मिला है, जिरें चेदी राज की नावे हितो वंशावल हैचार्यदेव कोकल जिसने चंदेलाकी नंदादेवीको विवाहा या । . प्रसिद्ध धवल बालार्ष नोट-केवाल प्रथमने ग्वालियर में राजा मोजके साथ संवत ९:३ सन् ई० ८७९में युद् किया था । यह गजा भोज कोबका महाराजा या निसने सन् ८५० से सन् ८५. तक राज्य किया था तथा कोश्कल प्रयमंत्र राज्य सन ८५० से ८७०. तक था। युवामदेव टनम संकरगण. युवराजदें कोकलदेव
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy