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प्राचीन जैन स्मारक। शताब्दोसे राज्य किया था। उनकी राज्यधानी चांदाके भांदकमें. मी जो प्राचीन कालमें एक बड़ा नगर था ।
वर्षा निलेके भीतर नागपुरके कुछ मागपर सन् ई०से दो शताब्दी पहले विदर्भ या वरारके हिन्दुओं का राज्य था। यही राज्य तेलुगूके अंध्र लोगों के हाथमें सन् ११३में पहुंचा फिर उस पर दक्षिगके राष्ट्रकूट वंशवालोंने सन् ७५० से १८०७ तक राज्यं किया।
उत्तरमें हैहय राजपूतोंके कलचूरी या चेदी वंशनोंने नर्बदा नदीकी ऊगरी घाटीपर राज्य किया। इनकी राज्यघानी त्रिपुरा या करणवेल थी जहां अब जबलपुरमें तेवर ग्राम है। इस वंशवालोंने अपने लेखोंमें अपने खास सम्वत्का व्यवहार किया था। तीसरी शताब्दीमें इनकी शक्ति बहुत जमी हुई थी। जबसे नौमी शताब्दीतक इनका नाम नहीं सुन पड़ा। अंतमें इनका वर्णन सन् ११८१ के लेखमें आया है। *
पुस्तम हैं वे इस बरह है-11) विन्याशक्ति (२) प्रवरसेन प्रथम (8) मद्रमैन प्रथम गौतम पुत्रका बेटा, यह गौतम प्रवरसेनका पुत्र शा (४) पृथ्याम्न प्रशम (५, रुद्रसेन द्वि. (6) प्रवरसेन द्वि. (७) नरेन्द्रसेन १८) देश्सेन (९) पृथ्वीसेन द्वि० (१०) हरिसेन । .
१ गष्टकूट वंशके पहुवसे राजा जैनधर्मके माननेपाले थे जिनमें महागन अमोघवर्ष बहुत प्रसिद हुए है।
*गड़ाद वम्बई प्रांतके गजटियर जिल्द २२ पीसे प्रगट होता है कि कलचुरी वंशशले जैन थे। इनका यह पद प्रसिद्ध था । :कालं. जर पाचाराधीश्वर' अर्थात सर्वोत्तम नगर कालंजाके स्वामी इनको उत्सत्ति इस नगरसे विदित होती है । यह बुंदेलखण्डमें अब एक गढ़ (किला)