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मध्य प्रान्त।
[३ नौवींसे १३ वीं शताब्दीतक सागर और दमोह महोवाके चन्देल राजपूतोंके राज्यमें गर्भित थे । उसी समयके अनुमान असीरगढ़का वर्तमान किला चौहान राजपूतोंके हाथमें था। नर्बदा पाटीके पश्चिम शायद मालवाके परमार राज्यने ११वीं और १३वीं शताब्दीके मध्यमें राज्य किया होगा। सन् १९०४-५का एक लेख नागपुग्में है कि कमसेकम एक परमार राना लक्ष्मणदेवने नागपुरको अपने राज्यमें मिला लिया था। छत्तीसगढ़में हैहयवंश या चेदीवंशने रतनपुरमें स्थान जमाया था और रायपुर तथा विलाहै । कनिंघम साहबकी रिपोर्ट जिल्द ,९ से मालूम होता है कि नौपी, दशी तथा ग्यारहवीं शताब्दी में इस वंशकी एक पलवती शाखा बुंदेलखण्डमे गज्य करती थी जिपको चेदो भी कहते थे । इनका . प्रारम्भ सन् २४९ से मालूम होता है । इनकी राज्यधानी त्रिपुरा थी जो जवरपुरसे पश्चिम ६ मील तेवर ग्राम है।।
कलचूरी वंशके त्रिपुग निशसियोने कई दफे गष्टक्टोंसें और पश्चिम 'चालुक्योंसे विवाह सम्बन्ध किये थे। इस कल्चरी वंशकी एक शाखा छठी शताब्दीमें कोंकण ( बंबई प्रांत ) में राज्य करती थी। यहांसे इनको पुलकेशी द्वि० (सन् ६१०-६३४ ) के चाचा चालुक्य वशी -मंगलोसने भगा दिया था ।
कल्चरो लोग अपनेको हैहय वंशी कहते है और अपनी उत्पत्ति यदुवंशसे कार्यवीर्य या सहस्रबाहु अर्जुनसे बनाते है।
नोट संपादकीय-मध्यप्रान्तमें जैन कलवार नामकी जाति प्रसिद्ध है। यही जाति कलचूरी वंशकी सन्तान है ऐसा मध्यप्रांत सेन्सस रिपोर्ट सन् १९११ पृष्ठ २३०में बताया गया है । ये जैन कलवार बहुत संख्या में है। अब जैनधर्मको भूल गए हैं। आचार भी कुछ २ बिगड़ गया है ।
कनिंघम साहपकी रिपोर्ट नं. ९ में कलचूरी राजाभोंकी वंशावली दी है वह इस प्रकार है