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मध्यप्रान्त, मध्यभारत और राजपूतानाकेप्राचीन जैन स्मारक।
प्रथम भाग-मध्य प्रान्त। Imperial Gazetter of India C. P. (1908). भारतके बादशाही गजटियर मध्य प्रांत (१९०८) से जो समाचार, विदित हुआ है उसको मुख्यतया ध्यानमें लेकर मध्य प्रांतका वर्णन प्रारम्भ किया जाता है। बीच २ में और पुस्तकोंका वर्णन भी आयगा। बहुतसा मसाला हरएक जिलेके गजटियर, मध्य प्रान्तका इतिहास और कौजन साहबकी रिपोर्टसे लिया गया है। जबलपुर जिलेमें रूपनाथपर महाराजा अशोकका शिला स्तंभ है जिससे प्रमाणित है कि महाअशोककार राज्य मध्यप्रांतके इस भागमें था। सागर जिलेके एरन स्थानपर चौथी या पांचमी शताब्दीके लेखोंसे प्रगट है कि यहां मगधके गुप्तवंशके पीछे श्वेत हून तूरानियोंने राज्य किया। शिवनी और अजन्टाकी गुफाके लेखोंसे जाना जाता है कि वाकातक वंशने शतपुरा और नागपुरके मैदानोंपर तीसरी ____ * यह जैन सम्राट चन्द्रगुप (जो श्री भद्रवाहु श्रुतकेवलीके शिष्य मुनि होगए थे) का पोता था वह अपने राज्यके २९ वर्षतक जैनी रहा फिर वौद्ध होगया था । यह अहिंसाका प्रचारक था । .
१ वाकातकं जो प्रवरणपुग्में गज्य करते थे उन राजाओंके कुछ ATA** Discriptive list of inscriptions in C. P. & Berar by R.S. Hiralal B. A. 1916." नामकी