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बरार प्रान्त में जैनियोंका मुख्य स्थान अकोला जिलेमें कारंजा है । यहां लगभग चार पांचसौ वर्ष से दिगंबर संप्रदायके भिन्न २ तीन गणोंके पट्टोंकी स्थापना है । बलात्कारगण, सेनगण और काष्टासंघ, इन तीनों ही गणोंके मंदिरोंमें एक२ शास्त्रभंडार है । बलात्कार गण और सेनगणके मंदिरोंके शास्त्रभंडार बड़े ही विशाल और महत्वपूर्ण हैं । इनमें अनेक अप्रकाशित और अश्रुतपूर्व संस्कृत, प्राकृत च हिन्दीके ग्रन्थ हैं । इनका उद्धार होनेकी बड़ी आवश्यक्ता है। अकोला जिले में दूसरा जैनियोंका " पवित्र स्थान सिरपुर है जहां अन्तरीक्ष पार्श्वनाथका मंदिर है ।
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मध्यभारत ।
मध्यभारतके अन्तर्गत अनेक अत्यन्त प्राचीन और इतिहास प्रसिद्ध स्थान हैं । अवंती देशकी गणना भारत के प्राचीन से प्राचीन राज्यों में की गई है । जिस दिन अन्तिम तीर्थंकर महावीरस्वामी - का मोक्ष हुआ था उसी दिन अवन्ती देशमें पालक राजाका अभिषेक हुआ था । जैन ग्रंथोंके अनुसार मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त भी अधिकांश अवन्ती (उज्जैनी) नगरीमें ही निवास करते थे । श्रुतकेवली भद्रबाहुने उज्जैनीमें ही प्रथम द्वादशवर्षीय दुर्भिक्षके चिन्ह देखे और चंद्रगुप्तको तत्सम्बंधी भविष्यवाणी सुनाई। चंद्रगुप्त सम्राट्ने यहां ही उनसे जिनदीक्षा लेली और यहांसे ही मूल जैन संघकी वह
* कारंजा और वहांके गण व शास्त्र भंडारोंका विशेष परिचय प्राप्त करने के लिये देखो:- १) दिगम्बर जैन खास अंक वर्ष १८ वीर सं० २४५१ 'कारंजा' वहांके गण और शास्त्रभंडार (२) सी० पी० गवन्भेन्ट द्वारा प्रकाशित - Cutlogue of Sanskrit - Prakrit Msg. 1. C. 1' & Berar.