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________________ (१७) आशाघरकी स्त्री पद्मावतीने प्रतिष्ठित कराई थी ( ० ५० ) । संवत् के उल्लेखसे अनुमान होता है कि सम्भवतः ये आशाघर उन प्रसिद्ध जैनाचार्य 'कलिकालिदास' आशाधरजीसे अभिन्न हैं, जिनके बनाये हुए ग्रन्थोंका जैन समाजमें भारी आदर है । ये आशाधर । वघेरवाल जातिके थे और राजपूताना में शाकम्भरी ( साम्हर ) के निवासी थे । मुसलमानोंके त्राससे वे वि० सं० १२४९ में धारानगरीमें और वि० मं० १२६५ में नालछे (नलकच्छपुर) में आ गये थे । उनके वि० सं० १३०० तकके बने हुए ग्रन्थोंमें नलकच्छपुरका उल्लेख मिलता है, पर मेहकर की मूर्तिके लेखपरसे अनुमन होता है कि वि० सं० १२७५ के लगभग आशाधरजी विदर्भ प्रान्तमें ही रहे होंगे । वे वधेरवाल जाति के थे और इस जातिकी चरारमें ही विशेष संख्या पाई जाती है। उनकी स्त्रीका नाम अन्यत्र सरस्वती पाया जाता है, पर सरस्वती और पद्मावती पर्यायवाची शब्द हैं अतः उनका तात्पर्य एक ही व्यक्तिसे हो सक्ता है । यह भी अनुमान होता है कि सम्भवतः आशाधरनी जब बरारमें थे तभी उन्होंने अपने 'मूलाराधनादर्पण' नामक टीका ग्रन्थकी रचना की थी । इस ग्रन्थका उल्लेख उनके वि० सं० १२८५ से लगाकर १३०० तकके बने हुए ग्रन्थोंकी प्रशस्तियों में पाया जाता है और वि० सं० १२७५के पूर्व के ग्रंथोंमें नहीं पाया जाता । इस ग्रंथकी प्रति भी अबतक केवल वरार प्रान्तान्तर्गत कारनामें ही पाई गई है, अन्यत्र नहीं । इन सब प्रमाणोंसे सिद्ध होता है। कि. आशाधरजीने वि० सं० १२७५ के लगभग कुछ काल वरार . प्रान्त में निवास किया और ग्रन्थ रचना भी की ।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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