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(१६) 'अचलपुरशब्दे चकरलकारयोः व्यत्ययो भवति अचलपुरं || इससे स्पष्ट है कि उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान् ), इतिहासज़ और वैयाकरणा इलराजासे इलिचपुर नामकी उत्पत्तिको स्वीकार" नहीं करते थे ।
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विदर्भ: प्रान्त में संस्कृतके अनेक बड़े२ कवि हो गये हैं । भारचि, दण्डी, भवभूति, गुणाढ्य, हेमाद्रि, भास्कराचार्य, त्रिविक्रमभट्ट, भास्कर भट्ट, लक्ष्मीधर आदि संस्कृत के अमर कवियोंका : विदर्भसे सम्बन्ध बतलाया जाता है । यहांके कचियोंने-प्राचीनकालमें: इतनी ख्याति प्राप्त की थी कि संस्कृत साहित्यमें एका रचनाशैली ही इस देश के नामसे - प्रख्यात हुई | काव्यरचना में 'वैदर्भी रीति' सर्वोच्च और सर्वप्रिय मानी गई है क्योंकि इस रीतिमें प्रसाद, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारत्व आदि गुण- विशेषरूप से पाये जाते हैं । इस देशमें अनेक जैन कवि भी हो गये हैं । ये कवि विशेषतः कारंजाके बलात्कारगण और सेनगणके भट्टारकों में से हुए हैं । इन्होंने धार्मिक ग्रन्थोंकी रचना की है, पर ये ग्रन्थअभीतक प्रकाशित नहीं हुए। वे वहांके शास्त्रभंडारोंमें ही रक्षित हैं । अपभ्रंश भाषाके प्रसिद्ध कवि धनपाल - जिनकी 'भविष्यदत्त कथा ? जर्मनी और बड़ौदासे प्रकाशित हो चुकी है, सम्भवतः इसी प्रांतमें हुए हैं। क्योंकि ये कवि धाकड़वंशी थे और यह जाति इसी प्रांत में पाई जाती है। भविष्यदत्त कथाकी दो अति प्राचीन प्रतियां भी इस प्रान्तकेही अन्तर्गत कारंनाके शास्त्रभंडारोंमें-पाई गई हैं । बुडाला जिलेके मेहकर (मेघंकर) नामक ग्रामके बालाजीके मंदिरमें एक खंडित जैन मूर्ति संवत् १२७२ की है जिसे
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