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विवाह छोड़ ईलराजापर चढाई कर दी । इसीसे उनका नाम दुल्हारहमान पड़ा। दूल्हारहमान और ईलके बीच घोर युद्ध हुआ जिसमें दोनों ही राजा काम आये। मुसलमानोंके ग्यारह हजार योद्धा इस युद्धमें मारे गये, पर अन्त में मुसलमानोंकी ही जीत हुई। युद्धमें मारे गये योद्धा सब एक ही स्थानपर दफन किये गये और उस स्थानपर एक इमारत बनवाई गई। यह इमारत अब भी विद्यमान है और 'गंजीशहीदा' नामसे प्रसिद्ध है । पास ही शाह दूल्हारहमानकी कत्रर भी बनी हुई है ।
उक्त कथाका उल्लेख तवारीख-इ- अमज़दीमें पाया जाता है, पर अन्य कोई पुष्ट प्रमाण इस वृत्तान्तके अभीतक नहीं पाये गये । सम्भव है कि दशवीं शताब्दि के लगभग यहां ईल नामका कोई जैनी राजा राज्य करता रहा हो, पर एलिचपूर उसका बसाया हुवा है यह बात कदापि नहीं मानी जासक्ती । अनेक ग्रंथों और शिलालेखोंमें इस नगरका प्राचीन नाम अचलपुर (अच्चलपुर ) पाया जाता है। इस नगर के पास ही जो मुक्तागिरि नामका सिद्धक्षेत्र है वहांकी कई मूर्तियोंपर यह नाम खुदा हुआ पाया जाता है । यही नाम ' निर्वाणकाण्ड' ग्रंथमें भी आया है; यथा 'अच्चलपुर वरणयरे इत्यादि । अञ्चलपुरका ही अपभ्रंश अचलपुर (एलिचपुर )... है और यह नाम विक्रमकी १२ हवीं शताब्दिमें सुप्रचलित हो गया था | उस समयके एक बड़े भारी वैयाकरण हेमचन्द्राचार्यने अपनी व्याकरण 'सिद्ध हैमचन्द्र' में इस नामकी व्युत्पत्ति करनेके लिये एक स्वतंत्र सूत्रकी ही रचना की है । वह सूत्र है 'अचलपुरे चलो:' । ८, ११८, इसकी वृत्ति करते हुए कहा गया है