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________________ (१४) कुंडिनपुर है। यह अमरावतीसे लगभग वीस मील है। कहा जाता है कि आधुनिक अमरावती उस समयमें कौण्डिन्यपुरके ही अंतर्गत थी। अमरावतीमें जो अम्बकादेवीकी स्थापना है वह कौण्डिन्यपु-रकी अधिष्ठात्रीदेवी कही जाती है। यहींपर रुक्मिणी अम्बिकादेवीकी पूजा करने आई थीं और यहींसे कृष्णने उसका अपहरण किया था । रुक्मिणीका भाई रुक्मी जब कृष्णसे पराजित हो गया और रुक्मिणीको वापिस नहीं लेसका तव वह बहुत लज्जित हुआ। लजाके मारे उसने कौण्डिन्यपुरको जाना ही उचित नहीं समझा। उसने एक दूसरे ही स्थानपर अपनी रानधानी बनाई। इसका नाम उसने भोजकट (भोजकटक) रक्खा । इस स्थानका नाम आजकल भातकुली है जो अमरावतीसे लगभग दस मील है। यहां जैनियोंका बड़ा प्राचीन मंदिर है और वार्षिक मेला लगता है। विक्रमकी ८ वी ९ वीं तथा १०वीं शताब्दिमें विदर्भ क्रमशः चालुक्य और राष्ट्रकूट राजाओंके राज्यमें सम्मिलित था। ये दोनों ही राजवंश जैन धर्मके पोषक थे और इसलिये उक्त शताब्दियोंमें यहां जैन धर्मका खुब प्रचार रहा । कहा जाता है कि मुसलमानोंके आगमनसे प्रथम दशवीं शताब्दिके लगभग वहाडान्तर्गत एलिचपूरमें 'ईल' नामका एक नैनधर्मी राना राज्य करता था। उसने वि० सं० १०००में अपने नामसे ईलिचपुर (ईलेशपुर) शहर वसाया। 'एक बार ईल राजाने एक मुसलमान फकीरके साथ बुरा वर्ताव किया इसका समाचार गजनीके तत्कालीन राजा शाह रहमानके 'पास पहुंचा। उस समय शाह रहमानका विवाह हो रहा था। उनको फकीरके अपमानसे इतना बुरा लगा कि उन्होंने अपना
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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