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________________ राजपूताना। [१६५ में जयमलने वनवाया, इसमें विशाल आकारकी एक कुन्थुनाथजीकी मूर्ति है इसको विजयदेवसूरिकी आज्ञासे सामीदारक ओसवालने सं० १६८४में प्रतिष्ठा कराई। दूसरे जैन मंदिरमें तीन विशाल मूर्तिये श्री महावीर, चंद्रप्रभु और कुंथुनाथजीकी हैं, इनपर लम्बा लेख है-प्रतिष्ठाकारक मुहनोत्र गोत्रकी वृहद शाषाके जयमल्ल ओसवाल सं० १६८१ राठोड़ महाराज गजसिंहके राज्यमें । (३०) केकिंद-मेरतासे दक्षिण पश्चिम १४ मील शिव मंदिरके पास एक जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथका है । इसके खंभेपर लेख है-सं० १६६५ राठौड़वंशी मल्लदेवके परपोते उदयसिंह । इनके पोते सारसिंहके पुत्र गजसिंहके राज्यमें जोगा ओसवाल और उसके पोते नापीने सकुटुम्ब सं० १६५९में श्री उज्जयंत और सेत्रुञ्जयकी यात्रा की व सं० १६६४में अर्बुदगिरी ( आबू ), राणापुर ( सादोदीसे दक्षिण ६ मील ) नारदपुरी (नादोल जि० देसूरी ) व शिवपुरी ( सिरोही) की यात्रा की व मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा विजयदेवसूरिने कराई । मूल मंदिरके सम्बन्धमें एक छोटा लेख एक मूर्तिके आसनपर है सं० १२३० आषाढ़ सुदी ९ किष्किन्धा (केकिंद) में (सु)विधिकी मूर्ति स्थापित की। (३१) चारलू-बागोदियासे उत्तर ४ मील यहां १३ वीं शताब्दीका एक श्री पार्श्वनाथका जैन मंदिर है। (३२) ऊनोतरा-बारलूसे पश्चिम ४ मील। यहां भी १३ वीं शताब्दीका एक जैन मंदिर है। . (३३) सुरपुरा-वारलूसे उत्तर पूर्व ३ मील । यहां श्री नेमिनाथका जैन मंदिर है । लेख १२३९का है।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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