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________________ १६४ ] प्राचीन जैन स्मारक । जिसके द्वारपर एक लेख है कि सं० १२२१ माघ वदी २ को केल्हणदेव राजाकी माता आणलदेवीने राजाकी सम्पत्ति से श्री महावीरस्वामीकी पूजाके लिये दान किया था। यह राष्ट्रकूट वंशी सहुलाकी पुत्री थी | सभामंडपके खंभे पर ४ लेख हैं - १ है सं० १२३६ कार्तिक वदी २ बुधे कल्हणदेवके राज्यमें थंथाके पुत्र रहाका और पल्हाने श्री पार्श्वनाथभीके लिये दान किया । (२८) कोरता - संदेरवासे दक्षिण पश्चिम १६ मील । यहां तीन जैन मंदिर हैं जो १४ वीं शताब्दीके हैं । (२९) जालोर - नगर जि० जालोर । जोधपुरसे दक्षिण ८० मील | यहां एक किला है उसमें तोपखाना तथा मसजिद है जो जैन और हिन्दू मंदिरोंके ध्वंशोंसे बनाई गई है। यहां बहुतसे लेख हैं व तीन जैन मंदिर श्री आदिनाथ, महावीर व पार्श्वनाथके हैं जो इनके लेखोंसे प्रगट है । वे लेख हैं (१) सं० १२३९ चाहमान वंशी कीर्तिपालके पुत्र समरुमेंह के राज्य में आदिनाथ का मंदिर श्रीमाल बनिया यज्ञोवीरने बनवाया । (२) सं० १२२१ में श्री पार्श्वनाथ के मंदिरमें चालुक्य राजा कुमारपालने जवालीपुर ( जालोर) के कंचनगिरिके किलेपर श्री हेमरिकी आज्ञासे कुवेरविहार बनवाया । (३) सं० १२४२ चाहमान वंशी समरसिंहदेवकी आज्ञासे यशोवीर भंडारीने मंदिरका जीर्णोद्धार किया । (४) सं० १२९६ श्री पार्श्वनाथ मंदिरके तोरण और ध्वजाकी प्रतिष्ठा पूर्णदेवाचार्यने की । (५) एक लेख सं० १९७४ परमार राजा विशालके समयका है | किला ८०० गजसे ४०० गज है । यहां दो जैन मंदिर और हैं एक सं० १६८३
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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