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________________ राजपूताना । [ १६३ कहते थे । मुंजराजने मेवाड़ या मेड़ापातापर हमला किया था तब मेवाड़ के राजाको छवलने मदद दी थी । इस छवलने महेन्द्रराजको भी मदद दी थी जब उसपर दुर्लभराजने हमला किया था जो. शायद हर्षके लेखके अलसार चाहमान विग्रहराजका भाई था । इसने धरणीवराहको भी मदद दी थी जब उसपर मूलराजने हमला किया था । यह चालुक्य मूलराज है जिसका सबसे अन्तका लेख वि० सं० १०३१का है । C माड़वाड़ी राठौड़ों में हथंडी बहुत प्रसिद्ध जगह है । यह राठौड़ हस्तिकुंडके राष्ट्रकूटोंके वंशज हो सक्ते हैं । (२४) सेवादी - वीजापुरसे उत्तर पूर्व ६ मील - यहां श्री महावीरस्वामीका जैन मंदिर है, कुछ मूर्तियां जैनाचार्योंकी हैं उनके आसनपर वि० सं० १२४५ संदेरक गच्छ है । मंदिरके द्वारपर कई लेख हैं - (१) वि० सं० ११६७ चाहमान राजा अश्वराज पुत्र कटुक - धर्मनाथ पूजार्थ । (२) वि० सं० ११७२ शांतिनाथ पूजार्थ कटुकराज द्वारा < द्रम्माका दान | (३) वि० सं० १२१३ - नडुलके दंडनायक बेजाद्वारा । (२९) घनेरवा - सेवादीसे उत्तर पूर्व ६ मील - पहाड़ी के नीचे श्री महावीरस्वामीका जैन मंदिर ११वीं शताब्दीका है । (२६) वरकाना - जि० देसूरी - यहां श्री पार्श्वनाथका जैन मंदिर १६वीं शताब्दीका है । (२७) संदेरवा - यह यशोभद्रसूरि द्वारा स्थापित संद्रक जैन गच्छका मूल स्थान है । यहां श्री महावीरस्वामीका जैन मंदिर है
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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