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प्राचीन जैन स्मारक।
द्वारमें दो तीन लेख हैं इसमें चाहमान राजा सामंतसिंहका नाम है । जोधपुरमें मुंशी देवीप्रसादके घरमें एक पाषाणका पहिया है उसमें एक बड़ा लेख है जिसमें हथुडीका नाम हस्तीकुंडी आता है । इसमें राष्ट्रकूट वंशजोंके नाम हैं, १० वीं शताब्दीमें यह राष्ट्रकूटोंकी राज्यधानी थी । हस्तिकुंडया गच्छके जैनाचार्योकी नामावली दी है । (J. B. A. S. Vol. LXII P. L. P. 309 ) इस लेखका पाषाण वीजापुर ( वलीगोदवाड़में ) ग्रामसे दक्षिण ३ मील एक जैन मंदिरके द्वारके पास लगा हुआ था। यह पुराने हस्तिकुंडके खंडहरोंमें पाया गया और वीनापुरकी जैनधर्मशालामें लाया गया। इसमें ६२ लाइन संस्कृतकी हैं । पहले ४१ श्लोककी प्रशस्ति सूर्याचार्यकृत है जो वि० सं० १०५३ (९९७ ई०) माघ सुदी १३ को रची गई थी। इसमें है कि धवलके राज्यमें हस्तिकुंडिकामें शांतिभट्ट या शांत्याचार्यने श्री ऋषभदेवकी प्रतिष्ठा की और उस मंदिरमें स्थापित की जिसको धवलगनाके वावा विदग्धने यहां बनवाया था । लाईन् से ६ में वंशावली दी है। लाइन २३से ३२ तक दूसरे लेखमें उसी मंदिरक , धवलके पिता
और बावाद्वारा भूमिदानका वर्णन है। इसमें वंशावली दी है-राजा हरिमनके पुत्र विदग्ध राष्ट्रकूटवंशी उनके पुत्र म्ट बलभद्र मुनिकी कृपासे सं०९७३में विदग्ध रानाने दान दिया।०९९६में मम्मटने उसीको बढ़ादिया। धवल मम्मटका पुत्र था। धवल राज्यका वर्णन पहले लेखमें लाइन १० से १२में है कि मं० १०५३में उसका सम्बन्ध राजा मुंजराज, दुर्लभराज, मूलराज और धरणी वराहसे था। यह मुंजराज मालवाका राना था, इसको बासमति मुंग भी