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________________ राजपूताना। [१५६ . श्रीजिनसेनकत हरिवंशपुराणमें प्रतिहारराजा वत्सराजका , कथन है (सन् ७८३-८४)। ' (१६) वारमेर-नि० मैलानी-जोधपुर शहरसे दक्षिण पश्चिम १३० मील | यहांसे करीव ४ मील उत्तर पश्चिम जूना वगरमेर नगरके ध्वंश हैं। २ मील दक्षिण जाकर तीन पुराने जैन मंदिर हैं। सबसे बड़े मंदिरनीके एक स्तंभपर एक लेख सन् १९९५ का है जो कहता है कि उस समय वाहड़मेरुमें महाराजकुल सामन्तसिंहदेव राज्य करते थे। एक दूमरा लेख संवत् १३५६का है, श्री आदिनाथ भगवानका नाम है। यह जूना वारमेर हतमासे दक्षिण पूर्व १२ मील है । ___ (१७) मेरत नगर-मेरतरोडप्टेशनके पास जोधपुरसे उत्तर पूर्व ७३ मील । इसको जोधाके चौथे पुत्र दूदाने १४८८ के करीव वसाया था। इसके उत्तर पूर्व फालोदी ग्राममें सुन्दर और ऊंचा जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथका है । वार्षिक मेला होता है । (१८) पालीनगर-(माडा: पाली) जोधपुर रेलवेपर बांदी नदीके तटपर | जोधपुर नगरसे दक्षिण ४५ मील। यहां एक विशाल - जैन मंदिर है जिसको नौलखा कहते हैं । यह अपने बड़े आकार, सुन्दर खुदाई काम व किलेके समान दृढ़ताके लिये प्रसिद्ध है। इसमें बहुतसा काम चारों तरफ बना है जिसमें भीतरसे ही जाया जासक्ता है, केवल बाहर एक ही द्वार है मे ३ फुट चौड़ा भी नहीं है । भीतर आंगनमें एक मसजिद भी है जो शायद इस लिये बनाई हो कि यहां नुसल्मान लोग ध्वंश न कर सकें। किसी समयमें पाली एक वडा नगर था . यहांके ब्राह्मणोंको पल्लीवाल कहते हैं। यहां ..
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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